अम्बेडकर नगर, 12 जनवरी, 2024।
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भगतसिंह जनअधिकार यात्रा अपने 34वें दिन अम्बेडकरनगर पहुँची। यात्रा राजेसुल्तानपुर से शुरु होकर पदुमपुर, देवरिया, गिरैया, मदैनिया, गढ़वल होते हुए सिंघलपट्टी में समाप्त हुई। इस दौरान भगतसिंह जनअधिकार यात्रा के कार्यकर्ताओं ने यात्रा के मक़सद पर बात की और इलाक़े के ज़रूरी मुद्दों को उठाया।
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इस क्षेत्र में बेहद ग़रीब मेहनतकश आबादी रहती है। इन लोगों के पास छोटी खेती है, लेकिन उनकी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा खेती से नहीं आता। उनके घर के बेटे-बेटियाँ दिल्ली, गुड़गाँव जैसे इलाक़ों में जाकर कारख़ानों में काम करते हैं और अपनी आय का एक हिस्सा अपने घर भेजते हैं। एक बड़ी आबादी पूंजी के अभाव में खेती से बेदखल है और उनके खेतों को किराये पर लेकर पूंजीवादी किसान नकदी फसलों को खेती करते हैं।
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इन इलाक़ों में न तो उच्च शिक्षा के लिए स्कूल है और न ही कोई अस्पताल। छोटी-छोटी बीमारियों के इलाज के लिए लोगों को 50 किलोमीटर दूर शहर भागना पड़ता है। स्थानीय चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह से झोलाछाप डॉक्टरों के हवाले है। पूरे तहसील क्षेत्र में मात्र एक डिग्री कॉलेज है जहां पर्याप्त शिक्षकों से लेकर तमाम बुनियादी सुविधाओं का बेहद अभाव है। देश के बाक़ी हिस्सों की तरह यहाँ भी रोज़गार के अवसर ने अब तक कोई दस्तक नहीं दी है। लोगों के पास पहुँचे हैं तो केवल मोदी सरकार के खोखले वायदे, बेतहाशा महँगाई और बदहाली।
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ऐसे हालात में भगतसिंह जनअधिकार यात्रा द्वारा यह अपील की गयी कि इन मुद्दों के ख़िलाफ़ आज हमें एकजुट और संगठित होने की ज़रूरत है। अगर हम इन तमाम चुनावबाज़ पार्टियों से उम्मीद लगाकर बैठे रहेंगे तो हमारे हाथ निराशा के अलावा और कुछ नहीं आयेगा। इसलिए मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ आज आम जनता को सड़कों पर आने की ज़रूरत है।
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अम्बेडकर नगर, 13 जनवरी, 2024।
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भगतसिंह जनअधिकार यात्रा के 35वें दिन अम्बेडकर नगर ज़िले के बहोरिकपुर गाँव में जनसभा का आयोजन किया गया। द्वितीय पाली में जहाँगीरगंज मार्केट और आसपास के इलाक़े में पदयात्रा निकाली गयी।
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आज उत्तर प्रदेश सहित पूरे देशभर फ़ासिस्ट ताक़तें साम्प्रदायिक रंग में रंगने की कोशिश कर रहा है। इसके पीछे वजह यह है कि 2024 का चुनाव क़रीब है। बढ़ती महँगाई, बेरोज़गारी, लगातार कम होती आमदनी से जनता बेहाल है। जनता एकजुट होकर इन मुद्दों पर बात करने लगेगी तो भाजपा की चुनावी वैतरणी कैसे पार करेगी! इसलिए तो आज तरह-तरह तिकड़मों के ज़रिये लोगों के आँखों में धुल झोंका जा रहा है। मन्दिर की बात करने वालो, घर-घर अक्षत पहुँचाने वालों की ज़ुबान जन समस्याओं को उठाने में काँपने लगती है। आज यात्रा जिस ग्रामीण क्षेत्र में थी वहाँ स्वास्थ्य विभाग की स्थिति बहुत भयावह है। 472 गाँव में केवल 2 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र और 6 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र है। इसमें भी डॉक्टर एवं अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की भारी किल्लत है। कोरोना कल में स्वास्थ्य की जो स्थिति थी उससे पूरी तरह स्पष्ट है केवल इस इलाक़े ही नहीं बल्कि पूरे देश में स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति बदहाल है। इसके साथ ही अन्य बुनियादी ज़रूरतें को पूरा करने में जनता की कमर टूट रही है। रोज़गार के संकट के कारण यहाँ से लोग बाहर पलायन करते रहते हैं। जो यहाँ रहते भी हैं खेतों में व ईंट के भट्ठे पर मज़दूरी, अपनी छोटी जोत के खेत पर काम करके या अन्य छोटे-मोटे काम करके बमुश्किल गुज़ारा कर पाते हैं। सरकारी स्कूलों की दशा भी दयनीय है। लोगों से इन मुद्दों पर एकजुट होकर लड़ना होगा। भगतसिंह जनअधिकार यात्रा में सबके लिए शिक्षा, रोज़गार, चिकित्सा और आवास आदि की माँगों को उठाया जा रहा है। इस यात्रा में भाजपा-आरएसएस साम्प्रदायिक राजनीति का पर्दाफ़ाश किया जा रहा है।
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लोगों को इन सवालों पर गम्भीरता से विचार करने की ज़रूरत है। दंगों और साम्प्रदायिक टकरावों में कभी कोई नेता, कोई पूँजीपति, कोई सेठ-व्यापारी क्यों नहीं मरता? दंगों में हमेशा आम ग़रीब मज़दूरों, मेहनतकश लोगों, निम्नमध्यवर्ग के कामकाज़ी लोगों के घर क्यों जलते हैं? उनकी जानें ही क्यों जाती हैं? कभी कोई तोगड़िया, कोई ओवैसी इन दंगों में क्यों नहीं मरता? कभी किसी सिंघल, योगी या अमृतपाल का घर क्यों नहीं जलता? इन दंगों में हमेशा आम मेहनतकश जनता का ही नुक़सान होता है। इसलिए आज हमें अपने बुनियादी मुद्दों पर एकजुट संघर्ष करने की आवश्कता है।
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