मोदी सरकार की नीतियों के कारण बढ़ती महँगाई, बेरोज़गारी, साम्प्रदायिकता और रिकार्डतोड़ भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के लिए जनएकजुटता व साम्प्रदायिकता-विरोधी दिवस (10 मई, 2023) पर ‘भगतसिंह जनअधिकार यात्रा’ के प्रथम सम्मेलन में शामिल होने
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दिल्ली चलो!
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साथियो, n1857 की बग़ावत हमारी विरासत है। 10 मई 1857 को लुटेरी अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध यह विद्रोह शुरू हुआ था। 1857 की बग़ावत अंग्रेज़ी राज के खिलाफ़ देश की जनता का बहादुरी भरा संघर्ष था, जिसमें हिन्दू, मुसलमान, सिख सभी ने शिरक़त की। धार्मिक बँटवारे को छोड़ एकजुटता की मिसाल क़ायम करते हुए भारत की जनता ने दमनकारी अंग्रेज़ी राज की चूलें हिला दीं। आज के समय में इसे याद करने का एक ख़ास महत्व है।
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1857 के विद्रोह के कारण ईस्ट इण्डिया कम्पनी का ‘कम्पनी राज’ चला गया और शासन को ब्रिटिश सरकार ने अपने हाथों में ले लिया। जनता के लम्बे संघर्ष के बाद बर्तानवी सरकार का औपनिवेशिक राज 1947 में चला गया। लेकिन 1947 में आज़ाद हिन्दुस्तान की गद्दी पर जो बैठे, वे देश के करोड़ों मज़दूरों, ग़रीब किसानों व मेहनतकशों के नुमाइन्दे नहीं थे, बल्कि शहीदे-आज़म भगतसिंह के अनुसार सेठ ठाकुरदास-पुरुषोत्तमदास जैसे लोगों के नुमाइन्दे थे। दूसरे शब्दों में, वे देश के कारख़ाना-मालिकों, बड़े पूँजीवादी ज़मीन्दारों और खानों-खदानों के मालिकों, ठेकेदारों, धनी व्यापारियों के समूचे वर्ग, यानी, पूँजीपति वर्ग के नुमाइन्दे थे। कांग्रेस इसी वर्ग की सबसे पुरानी पार्टी है। कांग्रेस के राज में जब तक जनता के पैसे के दम पर पब्लिक सेक्टर खड़ा करके पूँजीपतियों की ख़ातिर अवरचना व बुनियादी उद्योग खड़े करने थे, तब तक पब्लिक सेक्टर को बढ़ाया गया और जब टाटा-बिड़ला-अम्बानी-अडानी आदि ने अपनी आर्थिक शक्ति जनता को लूटकर और भ्रष्टाचार के बूते बढ़ा ली, तो 1991 में से निजीकरण, उदारीकरण और भूमण्डलीकरण की नीतियों को लागू कर जनता की गाढ़ी कमाई से खड़े किये गये सार्वजनिक सेक्टरों को कौड़ियों के दाम निजी पूँजीपतियों के हवाले करना शुरू कर दिया गया। देश के सेठों-व्यापारियों व धनपशुओं की आज की सबसे चहेती पार्टी भाजपा के 1998 से 2004 तक के वाजपेयी शासन के दौरान निजीकरण की रफ़्तार दोगुनी कर दी गयी।
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लेकिन 2014 से अभी तक के मोदी सरकार के शासन के दौरान पूँजीपतियों के समूचे वर्ग की जिस बेशर्मी और नंगई से सेवा की गयी है, उससे तो भारत के इतिहास की अतीत की सभी सरकारें शर्मा जायेंगी। मोदी सरकार ने एक नया “कम्पनी राज” यानी अडानी-अम्बानी-टाटा-बिड़ला-वेदान्ता आदि देसी लुटेरों का राज क़ायम कर दिया है। 1857 में अंग्रेज़ों के कम्पनी राज के ख़िलाफ़ देश की मेहनतकश जनता ने बग़ावत की थी। आज देश की मेहनतकश जनता को इस नये “कम्पनी राज” के ख़िलाफ़ उसी तरह से आवाज़ बुलन्द करने की आवश्यकता है। नरेन्द्र मोदी खुले तौर पर अडानियों-अम्बानियों के प्रबन्धक के रूप में काम करते हैं। यही वजह है कि इन धन्नासेठों पर से मोदी सरकार ने लगातार टैक्स घटाया है, उन्हें जनता के धन से लिये गये हज़ारों लाखों करोड़ रुपयों के कर्जों से माफ़ी दी है, उन्हें फ्री बिजली, ज़मीन आदि मुहैया करायी है। इससे सरकारी खज़ाने को जो घाटा हुआ है, उसे भरने के लिए पेट्रोल-डीज़ल पर मोदी सरकार ने 62 से 65 प्रतिशत कर लगाया है, रसोई गैस पर भी भारी टैक्स लगाया गया है। यहाँ तक कि चावल, गेहूँ, चीनी आदि जो करमुक्त थीं उन पर भी मोदी सरकार ने टैक्स लगा दिया है। आज हम जो भयंकर महँगाई का सामना कर रहे हैं, वह मोदी सरकार यानी नये “कम्पनी राज” की नीतियों का परिणाम है। आप महँगाई, बेरोज़गारी, दंगे-फ़साद से मुक्ति चाहते हैं, तो देसी लुटेरों के इस नये “कम्पनी राज” को ख़त्म करना ही होगा।
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1857 की बग़ावत को याद करने की दूसरी वजह है इस जनविद्रोह द्वारा स्थापित की गयी हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल। इस विद्रोह से हमें सीखते हुए यह गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि धर्म का राजनीति से कोई रिश्ता नहीं होना चाहिए। जनता की सही राजनीति का अर्थ है मेहनतकश वर्गों के हितों की सेवा के लिए नीतियों व योजनाओं का निर्माण और उसे लागू करवाने का संघर्ष, चाहे इसके लिए पुराने निज़ाम को उखाड़ फेंकने और जनता की नयी सत्ता को स्थापित करने की ज़रूरत ही क्यों न पड़े। धर्म सबका निजी मसला है। हम अलग-अलग धर्मों के होते हुए भी जनता की सही राजनीति पर एक हो सकते हैं और हमें होना ही चाहिए। भगतसिंह ने अपने लेख ‘साम्प्रदायिक दंगे और उनका इलाज’ में हमें यही सन्देश दिया है।
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अंग्रेज़ों ने 1857 में हिन्दू-मुस्लिम एकता की ताक़त को देखा और यह सबक सबक़ लिया कि भारत की जनता को धर्म पर “बाँटो और राज करो”। 1917 में बनी हिन्दू महासभा, 1925 में बने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और 1930 के दशक से मुस्लिम लीग ने वास्तव में अंग्रेज़ों की इसी नीति से सीखा और जनता को धर्म के नाम पर बाँटने का काम किया। आज़ाद भारत में आर.एस.एस. व भाजपा ने यह काम आज तक जारी रखा है। कांग्रेस ने भी नर्म साम्प्रदायिक नीतियों का जब-तब इस्तेमाल किया। आर्थिक संकट के दौर में जनता को धर्म के नाम पर बाँटना और बहुसंख्यक समुदाय की जनता के सामने अल्पसंख्यक समुदाय को दुश्मन बनाकर पेश करना हुक्मरानों के लिए ज़रूरी हो जाता है क्योंकि तभी वह सभी दिक़्क़तों का ठीकरा बेगुनाह ग़रीब अल्पसंख्यकों पर थोप सकते हैं और अपनी व्यवस्था और खुद को जनता के हाथों कठघरे में खड़ा किये जाने से बचा सकते हैं। इसीलिए “लव जिहाद” का नकली मुद्दा उछाला जाता है जबकि कई भाजपा नेताओं व उनके बेटे-बेटियों ने हिन्दू-मुस्लिम शादियाँ की हैं जैसे मुख्तार अब्बास नक़वी, शाहनवाज़ हुसैन, सिकन्दर बख़्त, सुब्रमण्यम स्वामी की बेटी, आदि। इसीलिए “गोरक्षा” का फ़र्ज़ी मसला उछाला जाता है जबकि केरल, गोवा और उत्तर-पूर्व के राज्यों में भाजपा नेता श्रीप्रकाश, विसासोली ल्होंगू, किरण रिजिजू, अर्नेस्ट मावरी, विरेन सिंह आदि खुद कभी बीफ़ बैन न लगाने का वायदा करते हैं और संगीत सोम जैसे भाजपा नेता खुद बूचड़खानों के निदेशक पाये जाते हैं। यह है सच्चाई, चाहे तो आप स्वयं इसकी जाँच कर लें।
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ऐसे समय में हमें क्रान्तिकारी विरासत से यह सीखना चाहिए कि धर्म पूर्णत: निजी मसला है। किसे क्या पहनना है, क्या खाना है, कैसे रहना है, यह निजी मसला है। इसे राजनीति में लाकर बेवजह का सिर-फुटौव्वल करवाने का काम अपने फ़ायदे के लिए भाजपा व आर.एस.एस. कर रहे हैं और यह चीज़ हर प्रकार के कट्टरपंथ को भी हवा दे रही है। इससे आपको और हमको कुछ नहीं मिलता। क्या आप एक भी भाजपा या आर.एस.एस. नेता या किसी अन्य धार्मिक कट्टरपंथी संगठन के नेता का नाम ले सकते हैं जिसका घर दंगों में जला हो, जिसके बेटे-बेटियों के हाथ में त्रिशूल और तलवार थमायी गयी हो? नहीं! उनके बेटे तो बीसीसीआई के अध्यक्ष बनेंगे, अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा में पढ़ेंगे और हम लोग फर्जी फ़र्ज़ी मुद्दों पर एक दूसरे का ख़ून बहायेंगे, ताकि भाजपा की चुनावी फसल की हमारे ख़ून से सिंचाई हो सके।
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साथियो, जाग जाइए! साम्प्रदायिक फ़ासीवादी ताक़तों के हाथों मूर्ख बनना बन्द कर दीजिए! धर्म को पूरी तरह से निजी मसला बनाकर अपनी वर्ग एकजुटता क़ायम करिए! हिन्दू का दुश्मन मुसलमान या मुसलमान का दुश्मन हिन्दू नहीं, बल्कि हर मज़हब के आम मेहनतकश लोगों के दुश्मन हर मज़हब के लुटेरे, शोषक और धन्नासेठ हैं। धन्नासेठों और इनकी बेशर्मी से व तानाशाहाना तरीके से सेवा करने वाली मोदी सरकार आज मेहनतकश जनता की बरबादी के लिए ज़िम्मेदार है और इससे आज़ादी हमारी लड़ाई का पहला ज़रूरी क़दम है। सेठों-व्यापारियों के धन पर चलने वाली किसी भी चुनावी पार्टी से कोई उम्मीद नहीं की जा सकती है। इसलिए दूरगामी लड़ाई तो मुनाफ़े पर टिकी समूची पूँजीवादी व्यवस्था को बदलने की है। यह तभी हो सकता है जब हम रोज़गार के अधिकार के लिए, महँगाई से आज़ादी के लिए, साम्प्रदायिकता से मुक्ति के लिए एक जुझारू जनान्दोलन खड़ा करें, जो धर्म और जाति के बँटवारों और दीवारों को गिरा दे। आइए, 1857 के अपने शहीदों से, आज़ादी के लिए लड़ने वाले क्रान्तिकारियों से सीखते हुए जुझारू जनएकजुटता क़ायम करें। ऐसी एकजुटता के सामने हर ताक़त बौनी है।
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इसी उद्देश्य के लिए 12 मार्च, 2023 से देशभर में के 12 राज्यों में भगतसिंह जनअधिकार यात्रा की शुरुआत की गयी है। ग्यारह राज्यों में चले इसके पहले चरण का समापन 15 अप्रैल को हुआ है। यह यात्रा घर-घर अभियानों के रूप में अभी भी जारी है। इस यात्रा का पहला सम्मेलन 10 मई, 2023 को, यानी 1857 की बग़ावत की 166वीं वर्षगाँठ पर दिल्ली में हो रहा है। यह दिन जनता के बीच एकजुटता और भाईचारे का दिन है। आप सभी से दिली अपील है कि इस सम्मेलन में अवश्य पहुँचे। देश भर से लोग इसमें पहुँच रहे हैं, ताकि मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों के फलस्वरूप पैदा हो रही महँगाई, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, धार्मिक कट्टरता व साम्प्रदायिकता के खिलाफ़ ख़िलाफ़ और तानाशाही के खिलाफ़ ख़िलाफ़ आवाज़ उठायी जा सके। nभगतसिंह जनअधिकार यात्रा के प्रथम सम्मेलन में शामिल होने के लिए
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दिल्ली चलो!
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सुबह 11 बजे, 10 मई, 2023
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● भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI)n● नौजवान भारत सभा n● दिशा छात्र संगठन n● बिगुल मज़दूर दस्ता
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सम्पर्क:- दिल्ली: 9289498250, 9693469694; उत्तर प्रदेश: 8858288593, 9891951393; हरियाणा: 8010156365, 8685030984; महाराष्ट्र: 7798364729, 9619039793; बिहार: 6297974751, 7070571498; उत्तराखण्ड: 9971158783, 7042740669; पंजाब: 9888080820; आन्ध्र प्रदेश: 7995828171, 8500208259; तेलंगाना: 9971196111; चण्डीगढ़: 8196803093
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