इलाहाबाद पहुँची भगतसिंह जनअधिकार यात्रा !

यात्रा जत्थे को शहर के छात्रों-युवाओं और जनता का मिला भरपूर समर्थन !

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5 जनवरी, 2024, इलाहाबाद। भगतसिंह जनअधिकार यात्रा अपने 27वें दिन इलाहाबाद पहुँची। 10 दिसम्बर से शुरू होकर कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश से होते हुए उत्तरप्रदेश में यात्रा का आज पहला दिन था। अन्य राज्यों समेत कुल 13 राज्यों के 80 ज़िलों से होते हुए तक़रीबन 8,500 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए यात्रा के दूसरे चरण का समापन राजधानी दिल्ली में होगा। भगतसिंह जनअधिकार यात्रा को जनता का व्यापक समर्थन मिल रहा है।

सुबह की पारी में इलाहाबाद शहर के विभिन्न इलाक़ों से यात्रा गुजरी। यात्रा की शुरुआत शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद पार्क से शुरू हुई। यही वह जगह है जिसे पहले अल्फ़्रेड पार्क कहा जाता था। अंग्रेजों के साथ लड़ते हुए इसी जगह पर चन्द्रशेखर आज़ाद की शहादत हुई थी। यात्रा जत्थे ने गगनभेदी नारों और गीतों के साथ आज़ाद के समतामूलक समाज के सपनों को संकल्प के तौर पर दोहराया और यात्रा के पहली पारी की शुरुआत की। इसके बाद यात्रा जत्था कटरा, विश्वविद्यालय चौराहा, पीडब्ल्यूडी दफ़्तर, कचहरी, सिविल लाइन्स, लेखाकार दफ़्तर, गवर्नमेण्ट प्रेस, इलाहाबाद उच्च न्यायालय होते हुए पत्थर गिरिज़ा पहुँचा। इस दौरान जगह-जगह नुक्कड़ सभाएँ करते हुए, क्रान्तिकारी गीत गाते हुए, हज़ारों पर्चे, सैकड़ों पुस्तिकाएँ बाँटते हुए छात्रों-युवाओं, प्रबुद्ध नागरिकों और आम जनता तक भगतसिंह जनअधिकार का सन्देश पहुँचाया गया और उन्हें शिक्षा, रोज़गार, चिकित्सा, आवास और जुझारू जनएकजुटता की ज़रूरत जैसे मसलों पर जागरूक, एकजुट और लामबद्ध किया गया। शाम की पारी में यात्रा जत्था छोटा बघाड़ा, पूर्वांचन चौराहा, पुलिस चौकी, बक्शी बाँध, दारा गंज आदि छात्र बहुल इलाकों में पहुँचा। छात्रों-युवाओं ने उत्साहपूर्वक यात्रा का स्वागत किया और यात्रा के सन्देश को ध्यानपूर्वक सुना।

यात्रा के दौरान जनता के बीच अपनी बात रखते हुए वक्ताओं ने कहा कि मोदी सरकार का शासनकाल जनता के लिए किसी दुःस्वप्न से कम नहीं है। एक ओर रिकॉर्डतोड़ महँगाई, बेरोज़गारी से आम जनता का जीना दूभर हो चुका है वहीं दूसरी ओर मोदी सरकार जनता की सुविधाओं में कटौती कर येन-केन-प्रकारेण अपना चेहरा चमकाने में लगी हुई है। 2025 में लगने वाले कुम्भ को उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने धार्मिक आयोजन से ज़्यादा अपने फ़र्ज़ी प्रचार का सरकारी आयोजन बना दिया है। हमारा यह स्पष्ट मानना है कि किसी भी राज्यसत्ता और सरकार को न तो कोई धार्मिक आयोजन करना चाहिए और न ही उसे प्रोत्साहित करना चाहिए। राज्य की ज़िम्मेदारी केवल प्रशासनिक व्यवस्था सँभालना है। आज बढ़ती बेरोज़गारी और बेलगाम महँगाई सबके सामने हैं। छात्रों-कर्मचारियों, मज़दूरों-कर्मचारियों के आन्दोलनों से बेनक़ाब होती मोदी-योगी सरकार के पास वोट की फ़सल को सींचने के लिए जनता को आपस में बाँटने, फ़र्ज़ी राष्ट्रवाद, सेना और युद्धोन्माद के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है।

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आज ज़रूरत है कि लोगों को सच्चे सेक्यूलरिज़्म के मुद्दे पर जागरूक किया जाये और शिक्षा,चिकित्सा, रोज़गार, आवास जैसे हक़ों-अधिकारों के लिए जनता की जुझारू एकजुटता क़ायम की जाये। भगतसिंह जनअधिकार यात्रा इसी मक़सद के साथ निकाली जा रही है। इतिहासबोध कहता है कि आज नहीं तो कल देश की जनता ज़रूर जागेगी और सत्ता में बैठे फ़ासिस्टों व तमाम चुनावबाज मदारियों की असलियत को समझकर अपना स्वतन्त्र पक्ष खड़ा करेगी।

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